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सवाल २ : मुरीद के लिए जमात के साथ नमाज पढ़ना ज़रूरी है?

जवाब: सालिक शहर में हो या जंगल में, हर एक फ़र्ज़ नमाज़ जमात के साथ अदा किया करें। जो बुज़ुर्गान सहरा नशीं थे, उनकी जमात मर्दान-ए-ग़ाएब के साथ होती थी। अगर दूसरे का मिलना मुमकिन नहीं होतो ख़ैर, मजबूरी है ये कहना कि करामा कातिबीन के साथ जमात हो जाती है, बे हूदगोई के सिवा और कुछ नहीं। हर शख़्स में यह लियाक़त कहां कि फ़रिश्ते उसकी इक़्तिदा करें। अगर बाल-फ़रिश्ते या अरवाह-ए-बुज़ुर्गान नमाज़ में उसके साथ शरीक हो जाएँ तो जमात की फज़ीलत हासिल नहीं हुई, हाँ, अगर मर्दान-ए-ग़ाएब शरीक होंगे तो जमात हो जाएगी।

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