सवाल १९ : आशिक़ माशूक़ से क्यों मोहब्बत करता है?
"जवाब: अगर 'आशिक़' इश्क़ में सरशार है तो कोई जवाब नहीं देगा। अगर जवाब देगा भी तो यही कहेगा कि मैं नहीं जानता। मोहब्बत एक राज़ है जो 'आशिक़' और 'माशूक' के दरमियान होता है।
""मियां आशिक़ और माशूक़ रमज़ीस्त,
करामन कातिबिन राहम ख़बर नीस्त।""
यानी 'आशिक़' और 'माशूक' के दरमियान ऐसा भी एक राज़ होता है जिसकी ख़बर करामन कातिबिन को भी नहीं होती है।
मोहब्बत गूंगे के मुंह में गुड़ की तरह है। गूंगा खा तो सकता है लेकिन बता नहीं सकता कि उसकी लिज्जत क्या है। मोहब्बत फूलों की ख़ुशबू की तरह है कि आप सूंघ तो सकते हैं मगर उसे दूसरों को बता नहीं सकते।
हर चीज़ हम को दिमाग़ के ज़रिए समझ में आती है मगर मोहब्बत दिमाग़ के दायरे के बाहर है। दिमाग़ उसे महसूस नहीं कर सकता, न जान सकता है, और जो चीज़ दिमाग़ के दायरे के बाहर हो उसे ही राज़ कहा जाता है और उसके मानी है जो समझने के बाद भी जो जानने के बाद भी अनजाना रह जाए। दिमाग़ की ज़ुबान लफ़्ज़ है और दिल की ज़ुबान एहसास है, और कुछ एहसास ऐसे होते हैं जिन को कभी-कभी लफ़्ज़ों में बयान करना मुश्किल होता है और मोहब्बत भी उन्ही एहसासों में से है।"