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सवाल १८ : इस मोहब्बत का क्या मकाम है जिसमें दीदार-व-मारिफ़त नहीं हो?
जवाब: बग़ैर दीद-ओ-मारिफ़त के मोहब्बत फ़िज़ूल है, असल मोहब्बत वही है जो मारिफ़त और दीदार के बाद पैदा हो। तालिब हर एक रास्ते से महबूब को तलाश करे क्योंकि इसको मालूम नहीं किधर से जल्द पहुँचेगा।
सूरह यूसुफ (१२:६७):
"ला तदखुलु मिन बाबिन वाहिदिन वावुदखुलु मिन अब्वाबिन मुतफर्रिकातिन।"
"तुम सब एक दरवाज़े से नहीं जाना, बल्कि कई जुदा-जुदा दरवाज़ों में से दाखिल होना। यूसुफ को हर एक दरवाजे से तलाश करना चाहिए। तालिब को ख़ामोश नहीं बैठना चाहिए बल्कि हर वक़्त कोशिश करता रहे।"
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