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सवाल १३ : इब्न-ए-अरबी रहमतुल्लाही अलैह के बारे में आपका क्या ख़्याल है?
जवाब: शेख इब्न-ए-अरबी (रहमतुल्लाही अलैह) ने ऐसी गुफ़्तगू की है जिससे मालूम होता है कि वह आलम-ए-ग़ैब' को छोड़ कर 'आलम-ए-शहादत' ही से राज़ी थे। और इन मौजूदात के इलावा, उन्हें किसी और मौजूद का वुजूद नहीं समझ आता। उन तमाम सूरतो और अशकाल को वह उसी की सूरत और अशकाल कहते हैं, और "वरा अल-वरा" से शऊर भी नहीं रखते। खुदावंद तआला सब से वरा अल-वरा है। बस, खूब समझो और ग़नीमत जानो। अगर तुम इन लोगों में से हो और इब्न-ए-अरबी मेरे ज़माने में होते, तो मैं उनको शवाहिद से छुड़ा कर बालातर ले जाता, और "वरा अल-वरा" का नज़ारा दिखाता। इस वक़्त वह नए सिरे से मुसलमान होते। अगर यह मेरा बयान ख़िलाफ़-ए-हक़ और हक़ीक़त है तो दोस्तान-ए-ख़ुदा का हाथ और मेरा दामन।
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