इस्लामी महीने रमज़ान के आख़री असरे की ताक रातों में से एक रात जिस के बारे में क़ुरआन-ए-क़रीम में सूरह क़दर के नाम से एक सूरह भी नाज़िल हुई है। इस रात में इबादत करने की बहुत फ़ज़ीलत और ताक़ीद आई है। क़ुरआन मज़ीद में इस रात की इबादत को हज़ार महीनों से बेहतर क़रार दिया गया है। इस हिसाब से इस रात की इबादत 83 साल और 4 महीने बनती है।
"लैलतुल क़दर" इंतेहाई बरकत वाली रात है। इस को "लैलतुल क़दर" इस लिए कहते हैं के इस में साल भर के अहक़ाम नाफ़िज़ किए जाते हैं और फ़रिश्तों को साल भर के कामों और ख़िदमतों पर मामूर किया जाता है। और यह भी कहा गया है के इस रात की दिगर रातों पर शराफ़त व अज़मत के बाइस इस को "लैलतुल क़दर" कहते हैं और यह भी मनक़ूल है के चुनांचा इस शब में नेक आमाल मक़बूल होते हैं और बारगाह-ए-इलाही में उन की क़द्र की जाती है इसलिए इस को "लैलतुल क़दर" कहते हैं। (तफ़सीर ख़ाज़न ज ४ प ४७३) और भी मुख्तलिफ शराफ़तें इस मुबारक रात को हासिल हैं।
बुखारी शरीफ़ में है, फ़रमान-ए-मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम: "जो शख़्स लैलतुल क़दर में ईमान और इखलास के साथ क़याम किया (यानी नमाज़ पढ़ी) तो उस के गुज़िश्ता (सगीरा) गुनाह माफ़ किए जाएंगे।" (बुखारी, ज १, प ६२६, हदीस: १९०१)
हज़रत-ए-सैय्यदना मालिक बिन अनस रज़ी अल्लाह ताला उन्होंने बयान किया के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सारी मख़्लूक़ की उम्रें दिखाई गईं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत की उम्र सब से छोटी पाईं तो ग़मगीन हुए के मेरे उम्मती अपनी कम उम्री की वजह से पहले की उम्मतों के जितने नेक अमाल नहीं कर सकेंगे चुनांचा अल्लाह पाक ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शब-ए-क़दर अता फरमाई जो दिगर उम्मतों के हज़ार महीनों से बेहतर है। इस हिसाब से इस रात की इबादत 83 साल और 4 महीने बनती है। (तफ़सीर कबीर, ज ११, प २३१, तहत अल-आयाः: ३)
लैलतुल क़दर में अल्लाह ताला ने क़ुरआन पाक को लौह-ए-महफ़ूज़ से आसमानी दुनिया पर उतारा। इस रात को क़ुरआन पाक का इतना हिस्सा लौह-ए-महफ़ूज़ से आसमानी दुनिया पर नाज़िल होता जितना इस साल में हज़रत जिब्राईल अलैहि सलाम नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ले कर आते। यहाँ तक के पूरा क़ुरआन रमज़ान उल मुबारक की लैलतुल क़दर में लौह-ए-महफ़ूज़ से आसमानी दुनिया पर उतारा गया। (सहीह मुस्लिम हदीस # १७८१ सहीह बुखारी हदीस # ३५)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "जो शख़्स शब-ए-क़दर में ईमान के साथ सिर्फ़ आख़िरत के लिए ज़िक्र और इबादत में गुज़ारे, उस के गुज़िश्ता गुनाह माफ़ किए जाएंगे।" (जामे तिरमिज़ी हदीस # ७९२/७९४/३३५१)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमज़ान के आख़री असरे में एतेकाफ़ करते और फ़रमाते: "शब-ए-क़दर को रमज़ान के आख़री असरे में तलाश करो।"
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शब-ए-क़दर को रमज़ान उल मुबारक के आख़री असरे के पाँच ताक रातों में तलाश करने की तलकीन फरमाई है। वो पाँच रातें २१, २३, २५, २७ और २९ हैं। अगर हम सब अददों को आपस में जोड़ते हैं मसलन २+१=३, २+३=५, २+५=७, २+७=९, २+९=११। उन जमा किये हुए अददों के हासिल नम्बर ताक नज़र आते हैं ३, ५, ७, ९, ११। अगर हम इन हासिल किए हुए नम्बरों को भी आपस में जोड़ दें तो हमें ३+५+७+९+११=३५ नम्बर हासिल होगा जो के ताक अदद के जुम्रे में आता है। और तुर्फ़े तमाशा देखिए के अगर हम इन पाँच रातों के ताक अददों को कुल जमा कर दें तो २१+२३+२५+२७+२९=१२५ फिर हमें १२५ हासिल होगा जो के ताक अदद हैं। ताक अल्लाह की वह्दानियत की तरफ़ इशारा है के जो अपनी ज़ात को इस वाहिद और यक़्ता की ज़ात में, अपने आप को फ़ना कर देता है फिर वो उस मक़ाम पे पहुँच जाता है जहाँ उस की हर रात, शब-ए-क़दर हो जाती है।
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