बड़ी खुशी की बात है जिस किताब "निसाब-ए-तसव्वुफ" का बरसों से हम खुलफ़ा-ए-कराम, मुरीदेंन, आक़ीदतमंद वा आशिक़ींन इंतेज़ार कर रहे थे, बहुत जल्द मेरे पीर-ए-कामिल हज़रत मारूफ पीर मद्ज़िल्लाहुल आली के सद्क़-ए-तूफ़ैल में मंज़र-ए-आम पर आने वाली है।
निसाब-ए-तसव्वुफ यानी सूफ़ीज़म का पाठ्यक्रम।
यह "निसाब-ए-तसव्वुफ" एक रहनुमा किताब है, इस किताब में एक मुरीद के लिए इब्तिदा से लेकर इंतिहा तक कैसे पहुंचे दर्जा ब-दर्जा सबक है। मेरे पीर-ए-कामिल ने इस किताब में अपने इल्म की वह रौशनी आता फरमाई है जो क़यामत तक आने वाले मुरीदो के लिए रौशनी का काम करेगा, राह-ए-हिदायत अता करेगा, राह-ए-मुस्तक़ीम दिखाएगा।
यह किताब सवाल-ओ-जवाब की शकल में है जिसमें हर सवाल का जवाब आसान लफ़्ज़ों में दिलकश अंदाज़ में ऐसा दिया गया है कि दिल में उतर जाता है। जो साहिब-ए-समझ है वह इस किताब का उन्वान इस किताब का नाम देख कर ही समझ जाएंगे कि इस किताब के अंदर क्या ख़ज़ाना छुपा हुआ है।
"मज़मून भाँप लेते हैं लिफ़ाफ़ा देख कर"
इस किताब की अहमीयत इस लिए भी बढ़ जाती है कि आज तक किसी ने भी इतने सारे नुक़ात एक किताब में जमा नहीं किए, मेरे पीर-ए-कामिल का ये एहसान-ए-अज़ीम है कि उन्होंने वह तमाम नुक़ात एक ही किताब "निसाब-ए-तसव्वुफ" के अंदर जमा फरमा दिया। जिस तरह से "सूरह अल-इख़लास" को एक तिहाई क़ुरआन कहा जाता है, इसी तरह से ये किताब तसव्वुफ़ की दुनिया में अपना मक़ाम रखती है।
"निसाब-ए-तसव्वुफ" में तसव्वुफ़ के असूल, क़वाइद, शरायत और वह तमाम बातें जो एक मुरीद-ओ-खलीफा को जानना राह-ए-सुलूक में असद ज़रूरी है, मौजूद हैं।
जब आप ये किताब का मुताअला करेंगे और इस से फैज़ हासिल करेंगे तो मेरे दावे को आप हक़ बजानिब पाओगे। मेरे पीर-ए-कामिल का एहसान-ए-अज़ीम है कि उन्होंने मुझ जैसे नाकारा को अपने फैज़-ए-इल्म से फ़ैज़ियाब फरमाया और सोने पे सुहागा ये है कि उन्होंने अपने सीने के इल्म को तहरीरी शक्ल में ला कर आता फरमाया।
Assalamu 'Alaykum wa Rahmatullahi wa Barakatuhu
Assalatu Wassalamu Alaika Ya Rasool Allah sallallahu alaihi wasallam
I have the ultimate trust, respect and faith in my peer o murshid
May all our shaykhs be blessed with good and a healthy life. ameen.
Wa'alaykum 'Assalam wa Rahmatullahi wa Barakatuhu